यहूदियों के रीति रिवाज़ के अनुसार तीन स्त्रीयाँ जो येसु की शिष्या थी, मरियम मगदलेना के साथ ईसा की कब्र पर तेल लेपन के लिये पहुँचीं जबकि पुरुष शिष्य एक कमरे में छुप कर बैठ गये जो कि कुछ ही दूरी पर था जहाँ ईसा को दफन किया गया था। ईसा के शिष्य होने के कारण उनके लिये खुले में घूमना आसान नहीं था। पकड़े जाने पर उन्हें प्रताडि़त किया जा सकता था। अतः मरियम मगदलेना व उसकी महिला साथी सबसे पहले ईसा की कब्र पर पहुँचीं और ‘ईसा के जी उठने’ की प्रथम साक्षी बनीं। कब्र पर बैठे स्वर्गदूत ने उनसे कहा, ’’डरिए नहीं। मैं जानता हूँ कि आप लोग ईसा को ढ़ूढ रहीं हैं, जो क्रूस पर चढ़ाये गये थे। वे यहाँ नहीं हैं। वे जी उठे हैं, जैसा कि उन्होंने कहा था। आइए और वह जगह देख लीजिए, जहाँ वे रखे गये थे।’’ (सन्त मत्ती 28/5.6) जैसे ही वे वापिस उस स्थान पर पहुँची जहाँ पुरुष शिष्य छिप कर बैठे थे उन्हें खाली कब्र की सूचना दी। तब पैतरूस और योहन खाली कब्र की ओर दौड़े जहाँ उन्होंने उन पट्टियों को खुले हुए पडा पाया जिनसे ईसा को लपेटा गया था। इस घटना के बाद ईसा अपने शिष्यों के सामने उनके कमरे में प्रकट हुये। दूसरे बार अपने जी उठने को प्रमाणित करने के लिए अपने अविश्वासी शिष्य थोमस के सामने प्रकट हुए जिससे उसका संदेह दूर हो जाये। इसके बाद ईसा अन्य शिष्यों के सामने अलग.अलग स्थान तथा अलग.अलग समय पर अनेक बार प्रकट हुए। और अन्त में उन सभी की उपस्थिति में स्वर्ग में उठा लिये गये।
साऊल जो पहले ईसा के माननेे वालों व शिष्यों को सताने वाला था। उसने उन सभी का सर्वनाश करने के लिए कड़ी मेहनत की। ईसा स्वयं उसके सामने प्रकट हुआ। ईसा का तेज प्रकाश उसकी आँखों के ऊपर पड़ते ही वह अंधा हो गया और उसे कुछ भी नहीं दिखाई देता था। इस घटना से साऊल के जीवन में एक भारी परिवर्तन हुआ। वह ईसा का सबसे उत्साही शिष्य और ईसाई धर्म एवं मसीह के जी उठने के संदेश को प्रगट करने वाला महाप्रचारक बन गया जो एक आश्चर्य की बात है। सन्त पौलुस के साथ दमिश्क की आश्चर्यजनक घटना और उसके बाद की प्रेरिताई के अनुभव को नये व्यवस्थान की पुस्तक, प्रेरित चरित, के नोवें अध्याय में आप पढ़ कर प्राप्त कर सकते हैं।
सम्पूर्ण ईसाई धर्म का आधार एक ऐतिहासिक तथ्य पर है कि ईसा मरा और तीसरे दिन मृतकों में से जी उठा। सन्त पौलुस ने कुरिन्थियों के नाम पहले पत्र में मसीह के पुनरुत्थान का विवरण इस प्रकार किया हैः भाइयो! ‘‘मैं आप लोगों को उस सुसमाचार का स्मरण दिलाना चाहता हूँ, जिसका प्रचार मैंने आपके बीच किया, जिसे आपने ग्रहण किया, जिस में आप दृढ़ बने हुए हैं, और यदि आप उसे उसी रूप में बनाये रखेंगे, जिस रूप में मैंने उसे आप को सुनाया, तो उसके द्वारा आपको मुक्ति मिलेगी। नहीं तो आपका विश्वास व्यर्थ होगा’’।
जो कुछ भी मुझे प्राप्त हुआ मैंने वैसा का वैसा आप लोगों तक पहुँचाने में प्राथमिकता दिया जो इस प्रकार हैः मसीह हमारे पापों के लिए मरा, वह गाड़ा गया, धर्मशास्त्र के अनुसार वह तीसरे दिन जी उठे, वह कैफ़स को और बाद में बारहों को दिखाई दिये। इसके बाद एक ही समय पाँच सौ से अधिक भाइयों को दिखाई दिये, उनमें से अधिकांश आज भी जीवित हैं, यद्यपि कुछ मर गये हैं। बाद में वह याकूब को और फिर सब प्रेरितों को दिखाई दिये, और सब के बाद वह मुझे भी, मानो ठीक समय से पीछे जन्में को, दिखाई दिये।
मैं प्रेरितों में सब से छोटा हूँ तथा प्रेरित कहलाने के लायक भी नहीं हूँ क्योंकि मैंने मसीह की कलीसिया पर अत्याचार किया है। मैं जो कुछ भी हूँ, ईश्वर की कृपा से हूँ और मुझे जो कृपा मिली, वह व्यर्थ नहीं हुई। मैंने उन सब से अधिक परिश्रम किया है - मैंने नहीं, बल्कि ईश्वर की कृपा ने, जो मुझ में विद्यमान है। खैर, चाहे मैं होऊँ, चाहे वे हों - हम वही शिक्षा देते हैं और उसी पर आप लोगों ने विश्वास किया।
यदि हमारी शिक्षा यह है कि मसीह मृतकों में से जी उठे, तो आप लोगों में कुछ यह कैसे कहते हैं कि मृतकों का पुनरुत्थान नहीं होता? यदि मृतकों का पुनरुत्थान नहीं होता, तो मसीह भी नहीं जी उठे। यदि मसीह नहीं जी उठे, तो हमारा धर्मप्रचार व्यर्थ है और आप लोगों का विश्वास भी व्यर्थ है। (कुरिन्थियों 15/12.14) बारह शिष्यों तथा पौलुस जिन्होंने ईसा के जी उठने का प्रचार किया और दावा किया कि यहूदियों के अपेक्षित मसीहा वे ही हैं, उनमें से 10 शिष्यों ने अपनी शहादत स्वीकार किया।
इन दावों पर ईसाई धर्म फैलता गया। और आज भी ईसाई धर्म इन दावों पर पनप रहा है। सभी ईसाई ईसा के वायदे पर कायम हैं - डरो नहीं; ‘‘मैं संसार के अंत तक तुम्हारे साथ हूँ’’।
कुछ लोगों को लगता है कि ईसाई धर्म को एक गंभीर संकट का सामना करना पड़ रहा है! कुछ कहते हैं, ईसाई धर्म बीते युग की बात हो गई और कुछ ने तो ‘‘ईश्वर को मृत’’ ही घोषित कर दिया। जो यह सोचते हैं ईसाई धर्म का कोई अस्तित्व नहीं रहेगा तथा उनके मृत ईश्वर का भी कोई नामोनिशान नहीं रहेगा उन्हें समझ लेना चाहिए कि ईश्वर न कभी मर सकता है, न ही उसका अस्तित्व समाप्त होता है। इसके विपरीत, वह एक ऐसे चट्टान के समान है जिससे गुमराही जहाज टकराते और डूब जाते हैं।
यह ईसा का वह दावा ही था, कि वे ईश्वर के पुत्र हैं, इससे क्रूध होकर यहुदियों के पुरोहितों ने उसे पलीस्तीन में रोम के राजपाल पिलातुस के हवाले कर दिया। ईसा निरन्तर अपने दावे को दोहराते रहे, जबकि वह जानते थे कि इसके लिए उन्हें भारी कीमत चुकानी पड़ेगी। पिलातुस को उसे क्रूस पर चढ़ाने के लिए बाघ्य होना पड़ा। ईसा के पुनरुत्थान के समय से ही ईसाई धर्म फैलता गया जो ईसा की दैविक शक्ति तथा ईश्वर के राज्य का प्रमाण है। अतः ईसाई धर्म पर कोई संकट नहीं है। ईसाई युग चलता रहेगा और ईश्वर मरा नहीं ह,ै वह जीवित है उसका राज्य इस संसार के साथ साथ सम्पूर्ण ब्रह्मांड़ पर कायम है।
येसु जो मर गया था, तीसरे दिन मृतकों में से जी उठा, वह आज भी जि़दा है, वह ईश्वर का बेटा येसु है जो सदा काल चमकता रहेगा। वहीं हमें बचाता है और हम सबको अनन्त जीवन दिलाने के लिए मध्यस्थता करता है। वे उनके लिए भी अगुवाई करता है जो ईसाई धर्म के विरूद्ध गलत प्रचार करते हैं कि यह धर्म झूठा और आधारहीन है।
पुण्य शुक्रवार तथा ईस्टर (पुनरुत्थान) के पर्व हम सबके लिए यह संदेश देता हैः हम अपने पापों, गलतियों पर पश्चाताप करें, विश्वास के साथ परमेश्वर के पास वापिस लौट आयें ताकि हमारा नाश न हो। अधिक जानकारी के लिये नये व्यवस्थान से ईसा के मृत्यु तथा पुनरुत्थान के बारे में और ईसा के द्वारा किये गये चमत्कारों व कार्यों को पढ़ें तथा ईसाई धर्म के सर्वव्यापी प्रभाव तथा अनंत काल तक रहने वाले मसीह को जाने। (अधिक जानने के लिए ‘‘ईसा की मृत्यु एवं ‘‘प्रभु ईसा का पुनरुत्थान’’ पर क्लिक करें’’)
फादर वर्गीस एस.वी.डी.